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*छत्तीसगढ़ी परम्परा और संस्कृति का प्रतीक है हरेली त्यौहार-रतन शर्मा*

बरमकेला।छत्तीसगढ धान का कटोरा कहलाता है इसका मतलब यहां के अधिकतर लोग खेती किसानी करते हैं और इनके लिए हरेली त्यौहार का विशेष महत्व है।हरेली त्यौहार को श्रावण मास के कृष्ण पक्ष अमावस्या में मनाया जाता है । हरेली त्यौहार किसान और सभी छत्तीसगढ़वासियो का त्यौहार है । हरेली मतलब प्रकृति के चारों तरफ हरियाली से है । किसान खेत में बोआई, बिआसाई कार्य पूर्ण करके इस त्‍यौहार को मनाता है ।



इस दिन सभी किसान भाई अपने खेत में उपयोग होने वाले औजार जैसें- नागर, जुड़ा, रापा हंसिया, कुदारी, गैती, टंगिया, बसला, बिन्दना, आरी, पटासी, साबर आदि समान का हल्दी, दूध, चावल के पीसन (आटा) के घोल को औजारो पर छिडकाव करतें हैं और चावल से बने चीला रोटी, नारियल, हुम-जग से औजारो और धरती माता का पूू जन करते हैं, त्यौहार के दिन सभी घरों में मिष्ठान जैसे-पुडी, बडा, खुरमी, ठेठरी, कौचौडी आदि पकवान बनाये जाते हैं। प्रदेशवासी इस त्यौहार को हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं ।इस बार वर्षा भी किसानों के खेती के अनुकूल हुआ है इसलिए किसानों में उत्साह है और बड़ी धूमधाम और रीति रिवाज के साथ आज हरेली तिहार मनाया जा रहा है।इस अवसर पर बरमकेला अंचल के सुप्रसिद्ध समाजसेवी एवं विभिन्न संगठनों के पदाधिकारी रतन शर्मा ने सभी छत्तीसगढ़वासियों को हरेली तिहार की शुभकामना देते हुए बधाई दी है और अच्छे फसल के साथ प्रदेश की सुख,समृद्धि एवं शांति की कामना की है।
गौर तलब है कि हरेली त्यौहार के दिन ग्रामों में खेलों का आयोजन किया जाता है, जैसें- मटका फोड़, गोली चम्मस, जलेबी दौड़, गेडी दौड, गेड़ी नृत्य, इन खेलों में बच्चे, बुजुर्ग, जवान, महिला पुरुष सभी भाग लेते है । इन खेलों से इस त्‍यौहार में चार चांद लग जाता है ।किंतु धीरे धीरे यह सब कम होते जा रहे हैं।छत्तीसगढ़ की परंपरा एवं संस्कृति को बनाये रखने के लिए जरूरी है और इस दिशा में प्रदेश सरकार से श्री रतन शर्मा ने निवेदन किया है कि इसे प्रोत्साहित कर आगे बढ़ाने आवश्यक कदम उठाये जाएँ।

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