कींकामणि वैवर्तन नहर 40 साल से अधूरी, 20 गांवों के किसानों की किस्मत सूखी

सारंगढ़ जिले के बरमकेला क्षेत्र में स्थित कींकामणि वैवर्तन नहर का निर्माण करीब 40 वर्ष पहले मेडरा, खोरिगांव से होते हुए पोरथ जयपुर तक इसलिए किया गया था ताकि लगभग दो हजार एकड़ कृषि भूमि तक सिंचाई का पानी पहुंच सके और करीब 20 गांवों के किसानों के खेत हरियाली से भर उठें। लेकिन इन चार दशकों में नहर का उद्देश्य आज तक पूरा नहीं हो सका। करोड़ों रुपये खर्च होने के बावजूद किसानों के खेत आज भी प्यासे हैं और ग्रामीण अपनी आशाओं के टूटने के दर्द के साथ जीने को मजबूर हैं। अधूरी पड़ी यह नहर इलाके के विकास की बजाय असंतोष और उपेक्षा का प्रतीक बन चुकी है।

नहर में पानी नहीं, झाड़ियां–जंगल और असामाजिक तत्वों का अड्डा
बहरहाल, सबसे बड़ी विडंबना यह है कि जिस नहर ने किसानों की खेती सिंचित करनी थी, वह आज झाड़ियों, कंटीले पेड़ों और जंगल जैसे रूप में बदल चुकी है। कई स्थानों पर नहर का स्वरूप ही खत्म होता दिख रहा है। यही नहीं, यहां असामाजिक तत्वों का जमावड़ा होने लगा है, जिससे ग्रामीणों में भय का माहौल बना रहता है। सांप, जंगली सूअर जैसे खतरनाक जीव अक्सर इस क्षेत्र में घूमते रहते हैं, जिससे किसानों और बच्चों की सुरक्षा पर भी खतरा मंडराता है। नहर के उस पार खेतों तक पहुंचने का रास्ता भी लगभग समाप्त हो गया है, ऐसे में किसानों को लंबा चक्कर लगाकर खेतों तक जाना पड़ता है और इसका सीधा असर खेती–किसानी पर पड़ रहा है। विभागीय अधिकारियों की उदासीनता पर ग्रामीण प्रश्न उठा रहे हैं कि आखिर 40 वर्षों तक सरकार के पास किसानों के लिए फंड क्यों नहीं था? क्या उनकी मेहनत और सपनों की कोई कीमत नहीं?
रबी फसल प्रभावित, उत्पादकता घटी—किसान कर्ज में दबे, युवा पलायन को मजबूर
नहर की उपेक्षा का सीधा असर अब ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर पड़ रहा है। 20 गांवों की रबी फसलें लगातार प्रभावित हो रही हैं और उत्पादन में भारी गिरावट दर्ज की जा रही है। सिंचाई के अभाव में किसान कर्ज में डूबते जा रहे हैं। वहीं युवाओं का खेती से भरोसा उठ रहा है और रोजगार की तलाश में पलायन बढ़ रहा है। किसान सरकार से प्रश्न कर रहे हैं कि अगर पानी देना ही नहीं था तो नहर का निर्माण क्यों किया गया? और यदि निर्माण किया गया था तो 40 सालों तक इसका रखरखाव क्यों नहीं हुआ?

ग्रामीणों की यह आवाज अब आंदोलन में बदल रही है। किसान मांग कर रहे हैं कि नहर की तत्काल सफाई हो, पानी प्रवाह बहाल किया जाए और खेतों तक पहुंचने के लिए मार्ग व पुलों का निर्माण किया जाए। उनका कहना है कि अब सरकार को जवाबदेह बनने का समय आ चुका है और किसानों को उनका अधिकार हर हाल में मिलना चाहिए।



