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*कलमी की गुप्तेश्वर शिव मंदिर की सबसे अलग है विशेषता,जहाँ उमड़ती है आस्था का सैलाब*

*यहाँ विराजित है तिरछा स्वंयभू शिव लिंग,जिसका बढ़ रहा आकार*
*सच्चे दिल से मांगी हर मन्नतें होती है पूरी*

        *-मोहन नायक(पत्रकार)*
               *बरमकेला*
श्रावण मास भगवान भोलेनाथ को समर्पित है।ऐसे में पूरे माह भर भगवान शिव को प्रसन्न करने एवं आशीर्वाद पाने के लिए तरह-तरह की पूजा अर्चना,कावड़ यात्रा और जलाभिषेक आदि किया जाता है।ऐसे में शिवालयों में भक्तों की भारी भींड रहती है।खासकर सोमवार के दिन और स्वयम्भू शिव लिंग प्रकट हुए हैं वहाँ के मंदिरों में अपार भींड जलाभिषेक और पूजा अर्चना करने पहुंचते हैं।ऐसे ही अपनी विशेषताओं के कारण पुसौर क्षेत्र के  ग्राम कलमी स्थित गुप्तेश्वर शिव मंदिर की है। कलमी पुसौर सरिया मार्ग पर मुख्य सड़क से 1 किमी भीतर स्थित है।यहाँ दो तालाब के बीच मेढ़ में प्राचीन काल के भगवान गुप्तेश्वर महादेव की अद्भूत स्वयंभू शिवलिंग विराजमान है।


इस शिवलिंग की सबसे अलग विशेषता यह भी है कि यह तिरछा है।इसके अलावा  लोगों की जो मान्यता एवं आस्था है उसके अनुसार गांव में चोरी व सर्पदंश से आजतक कोई भी हताहत नही हुआ है इन्ही आस्था की वजह से वर्ष भर यहां भक्तों का आनाजाना लगा रहता है।लोगों की यह मान्यता है कि भगवान भोलेनाथ से सच्चे दिल से जो भी मांगते है वह जरूर पूरी होती है इसलिए लोगों की आस्था एवं विश्वास का केन्द्र भी है।
श्रावण सोमवार को भारी संख्या में श्रद्धालुओं का जत्था भगवान भोले नाथ का  जलाभिषेक और पूजा अर्चना करने पहुंचते हैं।
इसकी ख्याति  अथवा अलग महत्व को लेकर मंदिर ट्रस्ट के सदस्य बताते हैं कि द्वापर युग में कलमी से लगभग 7 किमी दूर माण्ड नदी किनारे बसे ऐतिहासिक एवं  पवित्र धार्मिक स्थल  पोरथ धाम से एक काले रंग की गाय गुप्तेश्वर महादेव मन्दिर स्थल मे दोनॉन तालाब के बीच स्थित मेढ़ में आकर खड़ी होती थी और खड़े होते ही गौ माता की थन से अपने आप दूध निकलने लगती थी इसे किसी ने जब देखा तो गांव वासियो को अवगत कराया। यही नहीं  जहां गाय आती थी वह स्थल आग की तरह तपती रहती थी। पौराणिक जमाने का दैवीय आस्था को सुनकर ग्रामीणों के द्वारा खजाना होने की लालच में खुदाई किये तो उन्हें एक पत्थर का चौखट,नन्दी, भैरव व शिवलिंग निकला।इसके बाद आस्था का सैलाब भगवान भोलेनाथ के प्रति बढ़ गया और ग्रामीणों ने पैरा, लकड़ी से झोपड़ी बनाकर शिवलिंग मंदिर की स्थापना किए। और मुख्य मंदिर के बाए तरफ भैरव व सामने में नन्दी महाराज को स्थापित किया गया।मान्यता है कि गौ माता से प्रसन्न हो कर ही भगवान भोलेनाथ का यह स्वयंभू शिवलिंग प्रगट हो गए । गौ माता के थन से दूध भोलेनाथ के शिवलिंग में अर्पण होता था।इस स्थान पर सैकड़ों साल बाद सन 1939 में मंदिर बनाने की शुरुवात हुई और करीब 2 वर्षों में पूर्ण हुआ। इस मंदिर के पुजारियो ने बताया कि वे वर्षो से इस अद्भूत शिवलिंग का पुजा पाठ करते आ रहे है। यह शिवलिंग पहले से ही तिरछा है, शिवलिंग पहले छोटा था ,जो बढ़ रहा है जो इसकी सबसे बड़ी खासियत है।


कलमी गांव में स्थापित गुप्तेश्वर मंदिर का संचालन पूर्व में ग्रामीणों द्वारा किया जाता था फिर सन 1990 से समिति बनाकर किया गया,इसके बाद जैसे जैसे आस्था व श्रद्धालुओं की संख्या बढ़ी तो मन्दिर के संचालन के लिए 2003 में बाबा गुप्तेश्वर शिव मंदिर धर्मदा ट्रस्ट बनाया गया है।

जनश्रुति,आस्था और धार्मिक मान्यताओं के अनुसार लोगों ने बताया कि संसार कसेर नामक व्यक्ति को भगवान भोले नाथ सपने में आए। जिसमें उन्होंने भगवान भोलेनाथ के लिए मंदिर निर्माण करने लगें। इसी सपने को पूरा करने के लिए संसार कसेर ने मंन्दिर की नींव 1939 में रखी गई जिसका निर्माण का जिम्मा सरिया निवासी दाऊ मिस्त्री को दिया गया जो कारीगरों के साथ मिलकर दो वर्ष में सन 1941 में पूर्ण किये।



लोगों ने यह भी बताया कि कलमी गांव में जहरीले जीव जंतु सांप बिच्छू के काटे जाने से किसी  की भी मौत नही हुई है। एक किसान ने जहरीले जीव जंतु के काटे जाने से हुई जनहानि पर मन्नत मांगी थी जिस पर इस गांव में भगवान भोलेनाथ कृपा दृष्टि बनी हुई है इस वजह से जहां तक गांव की सीमा है वहा आज तक सांप, बिच्छु या फिर किसी भी जहरीले जीव जंतु के जहर से एक भी मौत नही हुई है।यही नहीं यहाँ भक्त जो भी मनोकामना लेकर आते हैं वह जरूर पूरी होती है।जिसके कारण दिनोदिन भक्तों की तादाद बढ़ती जा रही और दूर-दूर से लोग भगवान भोलेनाथ का आशीर्वाद लेने पहुंचते हैं।श्रद्धालुओं की बढ़ती तादाद को देखते हुए यहाँ पर सुविधाओं में और विस्तार करने की जरूरत है और इस दिशा में शासन प्रशासन और जिम्मेदार पदों पर विराजमान जनप्रतिनिधियों को ध्यान देने की जरूरत है।ताकि इस ऐतिहासिक धर्मस्थल को सुविधायुक्त बनाया जा सके और बड़े आयोजन आसानी से सम्पन्न हो सके।हालांकि यहाँ के मंदिर की विशेषता के कारण ही श्रद्धालुओ की अपार भींड होती है और आस्था का केंद्र भी है।

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